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कौन महत्वपूर्ण भगवान या रिश्ता

विद्रोही विचार
विद्रोही विचार
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कौन महत्वपूर्ण भगवान या रिश्ता
आज एक नई उलझन आ गयी की हम किसे महत्वपूर्ण माने, एक तरफ हमारा परिवार, हमारे रिश्ते खड़े हैं, और दूसरी और भगवान । दोनों एक ही पल मे निर्णय चाहते हैं की या तो मेरे हो जाओ या उनके ?उलझन बढ़ सी गयी हैं आइये मेरे दिमाग की इस उलझन को सुलझाते हैं । कुछ दिन पूर्व की बात है मेरे एक मित्र हैं, जो बहुत धार्मिक हैं, रोज नियम से 2 घण्टे जैन मन्दिर जाते है नियमित पुजा पाठ का अटूट क्रम है !आजतक उनका मन्दिर का रूटीन आंधी, तूफ़ान,बड़ी से बड़ी परिस्थितियों मे भी नही टुटा । एक दिन अचानक जब वो मन्दिर जा रहे थे की उनके पिताजी को दिल का दर्द उठा , उनके पिताजी ने कहा बेटा मुझे अस्पताल ले चल, उसने कहा पहले मै मन्दिर होकर आता हूँ फिर अस्पताल चलते हैं, और वो मन्दिर चला गया, जब आया तो पिताजी ह्रदयाघात से चल बसे थे ! अब मेरे मानस पटल पर एक प्रश्न ये उठता हैं की एक और आप की मंदिर मे पुजा , दूसरी और आप अपने पिताजी को दर्द मै छोड़कर भगवान के मन्दिर जा रहे हो,एक भगवान जो पिता के कहने मात्र पर 14 वर्ष का वनवास भोग लेते हैं,एक आप जो अस्पताल तक नही ले जा पा रहे हो । दोस्तों, सत्य और कड़वी बात ये हैं की जो इंसान अपनों का नही हो सकता ,वो कभी भगवान का नही हो सकेगा । जब आप अपनों को ठुकराते हो, समझ लो की ईश्वर ने आपको अपनी शरण से दूर कर दिया । जब हम बढ़े हो जाते हैं ,तो माँ बाप,भाई,बहिन, आदि रिश्तों को छोड़कर चले जाते हैं । जो कल तक हमारा हाथ पकड़कर चल रहे थे, आज हम उन्हें बीच मंझधार मे छोड़ देते हैं ।कितनी शर्मनाक बात हैं । क्या अब भी आप सोच रहे हैं की भगवान आपको अपना आशीर्वाद देगा । दोस्तों, ये सबसे बुरा पल होता हैं, जब आप जीते जी माँ बाप की सेवा नही करते और मरने के बाद उनकी याद मे मन्दिर, अस्पताल,आदि बना देते हैं । कुछ नही होने वाला आपका। यदि आप मन्दिर नही जाते, कोई बात नही, भगवान को नही पूजते,कोई बात नही, पर यदि आपके रिश्तों को आपने ईमानदारी से निभा लिया,समझ लीजिये की ईश्वर आपको खुद आशीर्वाद देने जमीन पर आ जायेगे। यंहा रिश्तों से मतलब माँ बाप तक ही सिमित नही हैं, हर रिश्ता एक महत्व रखता हैं, पति पत्नी का रिश्ता भी उतना ही महत्वपूर्ण हैं । इस रिश्ते मे भी जब हम दुःख, तकलीफ देते हैं, हमसे धीरे धीरे सारे सुख दूर होते जाते हैं ।यदि जीवन मे सुख की कल्पना करना हो तो पति पत्नी के रिश्ते मे सम्मान, प्यार, आत्मीयता ,अपनापन,हो । यकीन मानो की जिंदगी मे बदलाव आ जायगा । दोस्तों, आज के विषय पर मेरा कहने का अभिप्राय यही हैं की हमारे लिये ईश्वर की सत्ता, महत्वपूर्ण हैं।लेकिन यदि ईश्वर का आशीर्वाद चाहिये तो ईश्वर के दिये और बनाये रिश्तों का सम्मान कीजिये, आदर कीजिये,महत्व दीजिये ।यकीन मानो आपको किसी पूजा, हवन,दान,पूण्य,कुंडली आदि दिखाने की कोई आवश्यकता नही पढ़ेगी ।ये एक बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर हम सिर्फ अपनी अंतरात्मा में झांककर ही देख सकते हैं. आज कितने ही परिवार ऐसे होंगे जिन में पिता-पुत्र के बीच किसी न किसी बात को लेकर विवाद चल रहा होगा. कई पिता ऐसे होंगे जो अपने बेटे से प्रताड़ित हो रहे होंगे और कई ऐसे होंगे जो बीती रात को भूखे पेट सोये होंगे. उनके लिए पिता व परिवार महत्ता नही रखता है,मगर मंदिर सफ़ेद वस्त्र पहनकर जाएंगे ! मन भले काला कलूटा , ईर्ष्या , क्लेश से भरा हो ! शायद इसका अंदाज़ा हम और आप नहीं लगा सकते. पत्र-पत्रिकाओं में आये दिन प्रकाशित हो रही दिल दहला देने वाली ख़बरें- ‘पुत्र ने पिता को पीटा’, ‘संपत्ति के लालच में पिता की हत्या’, या ‘बेटों ने माँ बाप को घर से निकाला’ , पत्नी को पति ने प्रताड़ित किया आदि हम लोग पढ़ते हैं, जाहिर है कि ये बातें उनके जेहन को झकझोरने के लिए मजबूर भी करती होंगी, लेकिन उसके बावजूद भी वे अपने आप को बदलना नहीं चाहते.! मंदिर व भगवान को पूजने से पहले आपके रिश्तों को आपने ईमानदारी से निभा लिया,समझ लीजिये की ईश्वर आपको खुद आशीर्वाद देने जमीन पर आ जायेगे। ये मेरे विचार हैं, हो सकता हैं की आप इससे सहमत नही हो। पर इस विषय पर आपकी राय और प्रतिक्रिया की आवश्यकता जरूरी है !
उत्तम जैन (विद्रोही )
uttamvidrohi121@gmail.com
mo-8460783401

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