Menu
blogid : 24253 postid : 1209875

कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप

विद्रोही विचार
विद्रोही विचार
  • 51 Posts
  • 10 Comments

66कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप
मेरी हत्या न करो माँ
मैं तेरा ही अंश हूँ माँ
पिताजी को समझा दो माँ
पिताजी को मना लो माँ

कन्या भ्रूण हत्या के रूप में हम अपनी जल्लाद मानसिकता के साथ सांस्कृतिक पतन की सूचना संसार को दे रहे हैं। यह महापाप है। अक्सर इसके लिए स्त्रियों को जिम्मेदार ठहराकर “स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है” वाला रटा रटाया फार्मूला सुनते है। सच तो यह है कि हम पुरुषो ने भ्रूणहत्या में अपने दोष को कभी देखा ही नही या देखकर खुद को नजर अंदाज कर दिया है ! पुरुष प्रधान भारतीय समाज में सक्षम स्त्री भी हर फैसले के लिए पुरुष का मुंह ताकती हैं। वह प्रणय क्रीड़ा में सहभागी होना चाहती है या नहीं, गर्भ निरोधक इस्तेमाल करे या ना करे, कितने बच्चों को कब जन्म दे, वे लड़के होंगे या लड़कियां, उन्हें शिक्षा कहां और कितनी देनी हैं- ये सब पुरुष तय करता है। जहां स्त्री का अपनी देह पर अधिकार नहीं होगा वहां कन्या भ्रूण हत्या तो होगी ही। अधिकांश मामलों में स्त्री विवश कर दी जाती है और न करने की स्थिति में उसका जीना हराम कर दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के लिए पुरुष ही पूर्णत: जिम्मेदार हैं। मरने के मुखाग्नि देने, तर्पण करने, वंशवृद्धि और संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए कुलदीपक” अर्थात् पुत्र की चाह होती है। चाहे उसके कारनामे कुल-काजल क्यों न हों। पुरुष, पुत्रजन्म को अपनी मर्दांनगी से जोड़ते हैं। कन्या भ्रूण हत्या 21वीं सदी के माथे पर कलंक है। स्त्री के अस्तित्व को गर्भ में ही नष्ट करने का कुकृत्य हो रहा है। “प्राइवेट क्लिनिक” कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं जो समाज की इस रुग्ण मानसिकता को अपने हक में भुनाकर चांदी काट रहे हैं। मुख्यतया सभी समाज में तो दुल्हनें अन्य समाज से “आयात” करनी पड़ रही हैं। कही परिवार तो ऐसे जहां राखी बांधने के लिए बहनें ही नहीं हैं।
स्त्री पुरुषों का अनुपात, खतरनाक रूप से असन्तुलित हो चुका है। प्रकृति के साथ यह क्रूर मजाक समाज पर ही भारी पड़ रहा है। जिस समाज की नैतिक चेतना सदियों से कुभकर्णी नींद में हो, उसे जगाने के लिए आज पुन: ढोल-नगाड़ों की जरूरत है। केवल कानून बनाना जरूरी नहीं, उसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। गैरसरकारी सामाजिक संगठनों से भी सन्देश पहुंचना चाहिए। शिक्षक ही नहीं, धर्म गुरु भी इसमें अपनी भूमिका तय करें, शास्त्रों में ईश्वर को “त्वं स्त्री” कहकर नारी रूप में आराधना की गई हैं, क्योंकि नारी अपनी सीमाओं में संपूर्णता की वाहक है।सामाजिक रूढ़ियां, पूर्वाग्रह, दहेज, शिक्षा-ब्याह पर होने वाला खर्च (क्योंकि लड़की को दूसरे घर जाना होता है) और असामाजिक आचरण से उसकी रक्षा, ऐसे कई कारण हैं जो कन्या भ्रूण हत्या के गर्भ में हैं। कन्या को मार दो और जिन्दगी भर के लिए बिंदास हो जाओ- पर इस नीच वृत्ति के लोग यह नहीं सोचते कि उनकी अगली पीढ़ी को शादी के लिए लड़कियां कहां से मिलेंगी। वे स्वयं भी तो किसी स्त्री से जन्मे हैं। कन्या भ्रूण हत्या के रूप में वे आत्मघात ही कर रहे हैं।
हमें बेटी को पराया धन और बेटे को कुल दीपक की मानसिकता से ऊपर उठने की जरूरत है। यह सोचा जाना भी आवश्यक है कि भ्रूण हत्या करके हम किसी को अस्तित्व में आने से पहले ही खत्म कर देते हैं। आज के दौर में बेटीयां बेटे से कमतर नहीं है। इस गलत परम्परा को रोकने के लिये हम सभी को मिलकर तेजी से अभियान चलाना होगा। सरकारी सहयोग की अपेक्षा हमें नही करनी चाहिये। इस मामले में कानून भी लाचार सा ही दिखता है। जाँच सेन्टरों के बाहर बोर्ड पर लिख देने से कि “भ्रूण जाँच किया जाना कानूनी अपराध है।” उन्हें इसका भी लाभ मिला है। जाँच की रकम कई गुणा बढ़ गई। रोजाना गर्भपात के आंकड़े चौकाने वाले बनते जा रहे हैं, चुकिं भारत में गर्भपात को तो कानूनी मान्यता है, परन्तु गर्भाधारण के बाद गर्भ के लिंक जाँच को कानूनी अपराध माना गया है। यह एक बड़ी विडम्बना ही मानी जायेगी कि इस कानून ने प्रचार का ही काम किया। जो लोग नहीं जानते थे, वे भी अब गर्भधारण करते वक्त इस बात की जानकारी कर लेते हैं कि किस स्थान पर उन्हें इस बात की जानकारी मिल जायेगी कि होने वाली संतान नर है या मादा। धीरे-धीरे लिंगानुपात का आंकड़ा बिगड़ता जा रहा है। यदि समय रहते ही हम नहीं चेते तो इस बेटे की चाहत में हर इंसान जानवर बन जायेगा। भले ही हम सभ्य समाज के पहरेदार कहलाते हों, पर हमारी सोच में भी बदलाव लाने की जरूरत है !
उत्तम जैन(विद्रोही)
uttamvidrohi121@gmail.com
mo-8460783401
नोट – मेरे इन विचारो से आप अगर प्रभावित है ! और इन विचारो से आप सहमत है तो बिना कांट छांट किये व् लेखक का नाम हटाये बिना श्योसल मिडिया ( व्ह्ट्स अप , फेसबुक , ट्विटर , अपने समाचार पत्रों में जरुर स्थान दे / फोरवर्ड करे ! अगर कुछ दो चार महानुभाव भी भ्रूण हत्या नही करेगे तो मेरा लेखन सफल हो जायेगा !

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh