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भारतीय युवा भटकाव की राह पर ….

विद्रोही विचार
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भारतीय युवा भटकाव की राह पर ….
आज कल युवा वर्ग जो उच्च मध्यम वर्ग का है जो आज अपनी शिक्षा के बल पर उड़ना चाहता है । उसे परिवार से यही सीखने को मिल रहा है कि चार किताबें पढ़ कर अपने career (भविष्य ) को बनाओ, यह युवा अपनी सारी ऊर्जा केवल अपने स्वार्थ या उज्जवल भविष्य के लिए लगा देता है । आज के युवा वर्ग पर पश्चिम सभ्यता का अत्यधिक प्रभाव है। उनमें अपनी सभ्यता ,संस्कृती और मान्यताओं की कोई अहमियत नहीं रह गई है। युवा वर्ग का गलत रास्तों पर जाना भी पश्चिमी सभ्यता के बढ़ते परिणाम का ही फल है। भारतीय समाज और युवा वर्ग पर यदि पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव इसी प्रकार बढ़ता रहा तो भारतीय सभ्यता व संस्कृति खतरे में पड़ सकती है। अभिभावको को चाहिए कि यदि वे भारतीय सभ्यता व संस्कृति को जीवंत रखने और सामाज से भ्रुण हत्या, दहेज प्रथा व अनपढ़ता जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए अपनी प्राचीन संस्कृति को ही अपनाएं और अपने बच्चों को भी इससे अवगत कराए ताकि युवा वर्ग को सही दिशा मिल सके। पति-पत्नी दोनों पढ़े-लिखे होने के कारण नौकरी करना चाहते हैं और करते भी हैं जिसके कारण उनके पास समय नहीं होता की वे अपने बच्चो की पढाई पर पूरा ध्यान दे सकें। अपने बच्चो की पढाई के प्रति उदासीनता भी बच्चो को गलत राह पर ले जाती है। युवाओं में भटकाव के पीछे एकल परिवार भी महत्वपूर्ण कारक है। परिवार के नाम पर पति-पत्नी और बच्चे उनकी सोच-समझ अपने तक ही सीमित रहती है। आखिर परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला है। यदि कभी भूले भटके उसका विचार देश या समाज की तरफ जाने लगता है तो घर परिवार और समाज उसे सब भूल कर अपने भविष्य के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है । यह वर्ग भी अपने आप को देश और समाज से अलग ही अनुभव या यूं कहें की अपने आपको को समाज से श्रेष्ठ समझने लगता है और सामाजिक विषमता का होना उसके अहम को पुष्ट करता है ।ओर कभी आज के युवा हताशा में गलत कदम उठा लेते है ! युवा वर्ग की हताशा देश का दुर्भाग्य है क्योंकि न तो इस वर्ग मे हम उत्साह भर सके न ही समाज के प्रति संवेदनशीलता । एक प्रकार से यह वर्ग विद्रोही हो जाता है समाज के प्रति, परिवार के प्रति और अंत में राष्ट्र के प्रति । क्या हमने सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है मुझे लगता है इसके पीछे कई वजह है , आज दुनिया भौतिकता वादी हो गयी है और लोगो की जरूरते उनकी हद से बाहर निकल रही है इसलिए उनके अंदर तनाव और फ़्रस्ट्रेशन बढ़ता जाता है , दूसरी बात पहले सयुंक्त परिवार थे तो अपनी कठिनाइया और तनाव घर में किसी ना किसी सदस्य के साथ बातचीत कर कम कर लेते थे घर में अगर कोई अकस्मात दुर्घटना हो जाती थी तो परिवार के बीच बच्चे बड़े हो जाते थे लेकिन आज न्यूक्लिअर फैमिली हो गयी है व्यक्ति को यही समझ में नहीं आता कि अपने दुःख-दर्द किसके साथ बांटे, पुरानी कहावत है कि पैर उतने ही पसारो जितनी बड़ी चादर हो लेकिन आज दूसरो की बराबरी करने के चक्कर में हम कर्ज लेकर भी अपनी हैसियत बढ़ाने की कोशिश करते है, आज के युवा वर्ग में जोश तो है पर आज के युवा को बहुत जल्दी बहुत सारा चाहिए और वो सब हासिल ना कर पाने पर डिप्रेशन में चले जाते है मेरा तो यही मानना है कि विपरीत समय और ख़राब हालात हमें जितना सिखाते है उतना हम अच्छे समय में नहीं सीख पाते इसलिए विपरीत समय को हमेशा ख़राब नहीं मानना चाहिए बल्कि विपरीत परिस्थितियों में हमें धैर्य रखना चाहिए और अच्छे समय का इंतज़ार करना चाहिए क्योंकि जिंदगी में अगर अँधेरा आया है तो उजाला भी आएगा अगर रात हुयी है तो सुबह भी होगी …..

उत्तम जैन (विद्रोही)

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