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शक नामक बिमारी.. तबाह हो रहे इन्सान

विद्रोही विचार
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bhay

शक नामक बिमारी.. तबाह हो रहे इन्सान

शक नामक बीमारी जो स्त्री, पुरूषों में प्रायः होती है लाइलाज है। ऊपर वाला न करे कि यह बीमारी किसी में हो। शक यानि संदेह जिसे अंग्रेजी में डाउट भीं कहते हैं एक ऐसी बीमारी है जो स्त्री-पुरूष के रिश्तों में दरार डालकर दोनों का जीवन दुःखद बनाती है। इसी शक पर पिछले दिनों मेरी एक लम्बी चौड़ी बहस पुराने मित्र से हुई। शक की बात चली तो उन्होंने कहा कि यह झूठ बोलने की वजह से होता है। झूठ तो सभीं बोलते हैं तो क्या सभीं पर शक किया जाए, इस पर वह बोले नहीं व्यापार में झूठ बोला जाता है। यदि सत्यवादी बन गए तो एक दिन कटोरा लेकर भीख मांगोगे। समय और परिस्थितियो के अनुसार ही झूठ-सच बोला जाता है। इस समय शक की बीमारी ने हर तरह की घातक बीमारियों को भीं काफी पीछे छोड़ दिया है। वो क्या है पति अपनी पत्नी पर, पत्नी अपने पति पर प्रेमी अपनी प्रेमिका और प्रेमिका अपने प्रेमी पर ‘शक’ करने लगे हैं। यार यह कोई नई बीमारी नहीं है सदियों से चलती आई रही है, और भविष्य (इन फ्यूचर) चलती रहेगी। देखो भाई जी लोग एक दूसरे को बेहद प्यार करते हैं वे नहीं चाहते कि उनके प्यार के बीच कोई दूसरा आए। वैसे तुमसे कुछ भीं अनजान नहीं है, ऐसा करो विषय वस्तु पर कुछ भी बोलने का ‘मूड’ नहीं हो रहा है। यार शक ‘डाउट’ संदेह आदि सब गुड़ गोबर कर देता है। इसका इलाज भीं नहीं है। कई लोग अपसेट हो चुके हैं। हमने देखा है कि शक्की मिजाज के कई स्वथ्य लोग और नवजवान स्त्री व पुरुष डिप्रेशन का शिकार होकर अच्छा खासा जीवन कष्टकारी बना डाला है। इन बेचारे कालीदासों को कौन कहे कि ‘शक’ करने की आदत को छोड़ दो मजे में रहोगे। रिश्ते वह भीं स्त्री-पुरूष के बहुत ही नाजुक होते हैं, इनको परखने के लिए मन की आंखे और दिमाग चाहिए। ‘शक’ की बीमारी से दूर रहकर ही प्रेम, प्यार का रिश्ता मजबूर रहेगा वर्ना…..।शक एक ऐसी मानसिक बीमारी व विकार है जो मात्र इंसानों पर को ही अपना शिकार बनती है | जानवरों में ऐसी बीमारियां देखने को नहीं मिलती | ये और बात है कि इस बीमारी के चलते मनुष्य में जानवरों से लक्षण दिखने लगते है | इसे कई अन्य नामों से भी पुकारा जाता है जैसे शंकालु , शक्की ,तुनुकमिजाजी आदि |यह बीमारी स्त्री और पुरुष दोनों पर अपना अलग-अलग प्रभाव दिखाती है | महिला या लड़की, शक की बीमारी से ग्रषित होने पर अत्यधिक कुढ़न ,जलन एवं मानसिक पागलपन महसूस करती है | गम्भीर अवस्था में वह स्वम् को भारी क्षति पहुचाने की कोशिश करती है | क्षति के रूप में कई दिनों तक भूखे पेट सोना ,पति या प्रेमी को प्रताड़ित करना ,बहसबाज़ी करना, खुद को मनोवैज्ञानिक रूप से परेशान करना ,झगडे के लिए हरवक्त उतारू रहना जैसी आदतें दृष्टिगोचर होती है | पर शक कि सीमा पार या बहुत गहरी होने पर महिला रोगी खुद की , पति एवं प्रेमी की जान कि प्यासी हो जाती हैं| इस बीमारी का अबतक कोई ईलाज उपलब्ध न होने के कारण पूरे चिकित्सा जगत में निराशा है | यह ऐसी खतरनाक और छुआछूत टाइप बीमारी है जो कभी भी किसी को भी किसी भी वक्त अपने शिकंजे में ले सकती है | में खुद की बात करू तो सबसे भाग्यशाली हु मेरी पत्नी मुझ पर कभी शक नही करती इसे में खुश किस्मती समझू या मेरा भी शक्की नही होना बस अब तो मेरा प्रवचन समाप्त नही तो शकी लोग बोेल उठेंगे नहीं डियर कलमघसीट विद्रोही यह साधारण बात नहीं है। तुम सीरियसली नहीं ले रहे हो, मेरी मानों औरइस विषय पर इतना ‘प्रवचन’ मत कहो। बी सीरियस, एण्ड टेक इट सीरियसली। वर्ना कहीं तुम्हारे (तुम-दोनों के) बीच ‘शक’ की बीमारी आ गई तब तो सब खेल चौपट, जिन्दगी तबाह, बरबाद।
डियर उपदेशक ऐसा नहीं है कि हमारे बीच ‘शक’ है। हम लोग रूठने-मनाने के लिए ड्रामा किया करते हैं और सच्चे प्यार को कसौटी पर कसकर उसकी मजबूती को देखते हैं। क्या समझे-यदि नहीं समझे तो हम क्या करें। तुम अपना काम कर रहे हो और हम हमारा। करते रहो, यही तो जिन्दगी है। बन्धु मगर यह मत सोचों कि हमारे प्यार के बीच किसी प्रकार के ‘शक’ की गुंजाइश है। बस ठण्ड रखो मजे करो हमे हमारे हाल पर रहने दो। …..
उत्तम जैन विद्रोही

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