Menu
blogid : 24253 postid : 1214583

धर्म के नाम पर फेल् रहा व्याभिचार

विद्रोही विचार
विद्रोही विचार
  • 51 Posts
  • 10 Comments

धर्म के नाम पर फेल् रहा व्याभिचार
भव्य महलनुमा आश्रमों में धर्म की आड़ में व्याभिचार पनप रहा है और भोली-भाली जनता से ठगी की जा रही है ! यह आज का कटु सत्य है कुछ मामले मिडिया जागरूक होकर सामने ले आती है तो कुछ जागरूक स्त्री पुरुष खुद की छवि को नजर अंदाज करके ऐसे मामले जगजाहिर कर जनता को सन्देश देते है ! मगर ज्यादातर मामलो में नारी व्याभिचार मामले में डर के मारे चुप्पी साध लेती है ! क्या हम पढ़े-लिखे सभ्य व्यक्तियों को सचेत नहीं हो जाना चाहिए? जेसा मेने जाना समझा व् पढ़ा विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है हमारी। हमारे वैदिक साहित्य के चिंतन का केन्द्र है ! हिन्दू धर्म ऐसी जीवनशैली बनकर विकसित हुआ जो जनमानस के प्रत्येक क्रियाकलाप में परिलक्षित होता है, फिर चाहे वह चरणस्पर्श हो या तिलक लगाना। यहां किसी भी प्रकार की प्रतिद्वन्द्विता का प्रश्न ही निरर्थक है। हमारी इस महानतम संस्कृति की आज यह अधोगति कैसे? क्या हम पढ़े-लिखे सभ्य व्यक्तियों को सचेत नहीं हो चाहिए ?हर तरफ भाषण-प्रवचन हैं, स्त्री-शक्ति की स्तुतियां हैं, कविताई हैं, संकल्प हैं, बड़ी-बड़ी बातें हैं। आप यक़ीन मानिए यह सब सच नहीं, आपको बेवकूफ़ बनाने के सदियों पुराने नुस्खे है। आपने अपनी छवि ऐसी बना रखी है कि कोई भी आपकी प्रशंसा कर आपको अपने सांचे में ढाल ले जा सकता है। झूठी तारीफें कर हजारों सालों तक दुनिया के सभी धर्मों और संस्कृतियों ने इतने योजनाबद्ध तरीके से आपकी मानसिक कंडीशनिंग( ब्रेन वाश ) की हैं कि अपनी बेड़ियां और बेचारगी भी आपको आभूषण नज़र आने लगी हैं। आचरणहीन ही कलियुग में ज्ञानी व संन्यासी है, उनमें वैराग्य कहां रहा जो बहुत धन लगा कर अपने आश्रम सजाते हैं। यह क्या स्त्रियों को सचेत करने के लिए काफी नहीं? क्या हमें यह विचार नहीं करना चाहिए कि कैसे देखते ही देखते गुरु करोड़ों के मालिक बन जाते हैं? कैसे सैकड़ों एकड़ में फैले भव्य आश्रमों के कड़े पहरे में क्रियाकलाप, व्याभिचार की गतिविधियों की साधारण जनमानुस को भनक भी नहीं पड़ पाती? आज सबसे ज्यादा शिकार नारी समाज हो रहा है अफ़सोस बेइज्जती के डर की बेडियो में जकड़ी नारी आज इन महागुरु के शिकार होने के बाद भी चुप्पी साधे हुए रहती है ! नारी सुलभ सरलता व कोमलता का लाभ धर्म के कथित ठेकेदार कहू या महागुरु ने हमेशा से उठाया है! इसका दोष हम आसानी से परिस्थितियों पर थोप सकते हैं, कह सकते हैं कि हम हजारो साल से गुलाम रहे थे इसलिए आज पूजा अर्चना में इतने आडंबर व विविध पाखंड हैं। समय आ गया है कि स्त्रियां स्वयं से प्रश्न करें कि बड़ी-बड़ी गाडिय़ों व् आलिशान आश्रमों में रहने वाले व् देश-विदेश भ्रमण करते ये धर्मगुरु क्या वास्तव में जनसाधारण के निकट हैं, जिनके दर्शनमात्र के लिए भी टिकट हैं और कोंफ्रेंस रूम है ! क्यों स्त्रियां भावविभोर हो जिन गुरु महाराज के चरण रज को इतनी आतुर रहती हैं? आज स्वतंत्र भारत में पढ़ी-लिखी प्रबुद्ध महिलाएं यदि भावात्मक रूप से गुलाम रहें तो दोष किसका है? प्रचुर धनराशि के मालिक संतों को त्यागमयी वैरागी कहें तो क्या यह हास्यास्पद नहीं क्योंकि कबीर के ही शब्दों में ‘साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहि।धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहि। कहते हैं आस्था अंधी होती है लेकिन जब इस अंधेपन से बाहर निकलकर सच्चाई का सामना होता है तो अंधभक्तों का भरोसा अपने आराध्य से उठ जाता है। भारत में वैसे भी बाबाओं, स्वामियों और संन्यासियों के ढोंगी होने का लंबा इतिहास रहा है।
उत्तम विद्रोही
मो -८४६०७८३४०१

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh