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मित्रता दिवस मेरी सोच

विद्रोही विचार
विद्रोही विचार
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मित्रता दिवस मेरी सोच
मित्रो आज मेरे बचपन में भी मित्र थे !आज भी है हा यह जरुर है पहले मित्रो की संख्या कम थी मगर अच्छी व् सच्ची थी ! आज फेसबुक पर 5000 मित्र व् व्हट्स अप पर असख्य मित्र है मगर क्या सच्चे मित्र कितने यह बताना मुमकिन नही क्यों की बहुत कम संख्या ही होगी ! वेसे सुदामा और कृष्ण जेसी मित्रता की तो आज अपेक्षा भी नही क्यों की न तो में वेसा हु न मेरे मित्र वेसे ! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और साथ ही उसमे विचारो को व्यक्त करने व् भावनाओ को महसूस करने की शक्ति होती है इसी कारण मनुष्य अकेला नही रह सकता एक मनुष्य दुसरे मनुष्य अथवा किसी अन्य प्राणी की तरफ आकर्षित होता है ! उसे भावनात्मक रूप से अपना समझता है बिना किसी रक्त सम्बन्ध के अपने दुःख व् सुख उससे बांटता है! सदेव उसकी मदद करता है या मदद की अपेक्षा करता है में उसे ही मित्रता या दोस्ती का सम्बन्ध मानता हु ! लेकिन इसके पीछे की भावना हर जगह एक ही है- “दोस्ती का सम्मान”। मन चाहे खुश हो या दुखी कुछ कहता ज़रूर है.दुःख बाँटने से कम होता है और सुख बाँटने से बढ़ता है तो क्यों ना मन की बात आपसे बांटू ……किसी अज्ञात कवि की ये पंक्तिया …..
”तुम्हारे दर पर आने तक बहुत कमजोर होता हूँ.
मगर दहलीज छू लेते ही मैं कुछ और होता हूँ.”
ये पंक्तियाँ कितनी अक्षरशः खरी उतरती हैं दोस्ती जैसे पवित्र शब्द और भावना पर .दोस्ती वह भावना है जिसके बगैर यदि मैं कहूं कि एक इन्सान की जिंदगी सिवा तन्हाई के कुछ नहीं है तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी.ये सत्य है कि एक व्यक्ति जो भावनाएं एक दोस्त के साथ बाँट सकता है वह किसी के साथ नहीं बाँट सकता.दोस्त से वह अपने सुख दुःख बाँट सकता है ,मनोविनोद कर सकता है.सही परामर्श ले सकता है.लगभग सभी कुछ कर सकता है.मित्र की रक्षा ,उन्नति,उत्थान सभी कुछ एक सन्मित्र पर आधारित होते हैं –
”कराविव शरीरस्य नेत्र्योरिव पक्ष्मनी.
अविचार्य प्रियं कुर्यात तन्मित्रं मित्रमुच्यते..”
अर्थार्त जिस प्रकार मनुष्य के दोनों हाथ शरीर की अनवरत रक्षा करते हैं उन्हें कहने की आवश्यकता नहीं होती और न कभी शरीर ही कहता है कि जब मैं पृथ्वी पर गिरूँ तब तुम आगे आ जाना और बचा लेना ;परन्तु वे एक सच्चे मित्र की भांति सदैव शरीर की रक्षा में संलग्न रहते हैं इसी प्रकार आप पलकों को भी देखिये ,नेत्रों में एक भी धूलि का कण चला जाये पलकें तुरंत बंद हो जाती हैं हर विपत्ति से अपने नेत्रों को बचाती हैं इसी प्रकार एक सच्चा मित्र भी बिना कुछ कहे सुने मित्र का सदैव हित चिंतन किया करता है दोस्त कहें या मित्र बहुत महत्वपूर्ण कर्त्तव्य निभाते हैं ये एक व्यक्ति के जीवन में .एक सच्चा मित्र सदैव अपने मित्र को उचित अनुचित की समझ देता है वह नहीं देख सकता कि उसके सामने उसके मित्र का घर बर्बाद होता रहे या उसका साथी कुवासना और दुर्व्यसनो का शिकार बनता रहे .तुलसीदास जी ने मित्र की जहाँ और पहचान बताई है —” कुपंथ निवारी सुपंथ चलावा , गुण प्रगट ही अवगुन ही बुरावा .”
तात्पर्य यह है कि यदि हम झूठ बोलते हैं ,चोरी करते हैं,धोखा देते हैं या हममे इसी प्रकार की बुरी आदतें हैं तो एक श्रेष्ठ मित्र का कर्त्तव्य है कि वह हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे.हमें अपने दोषों के प्रति जागरूक कर दे .तथा उनके दूर करने का निरंतर प्रयास करता रहे .विपत्ति का समय ऐसा होता है कि न चाहकर भी व्यक्ति सहारे की तलाश में लग जाता है.निराशा के अंधकार में सच्चा मित्र ही आशा की किरण होता है !.वह अपना सर्वस्व अर्पण कर भी अपने मित्र की सहायता करता है !मित्रता के लिए तो कहा ही ये गया है कि ये तो मीन और नीर जैसी होनी चाहिए ;सरोवर में जब तक जल रहा तब तक मछलियाँ क्रीडा और मनोविनोद करती रही परन्तु जैसे जैसे तालाब पर विपत्ति आनी आरम्भ हुई मछलियाँ उदास रहने लगी और पानी ख़त्म होते होते उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए ये होती है मित्रता जो मित्र पर आई विपत्ति में उससे अलग नहीं हो जाता बल्कि उसका साथ देता है ! दोस्ती वह रिश्ता है जो आप खुद तय करते हैं, जबकि बाकी सारे रिश्ते आपको बने-बनाये मिलते हैं। जरा सोचिए कि एक दिन अगर आप अपने दोस्तों से नहीं मिलते हैं, तो कितने बेचैन हो जाते हैं और मौका मिलते ही उसकी खैरियत जानने की कोशिश करते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह रिश्ता कितना ख़ास है। आज जिस तकनीकी युग में हम जी रहे हैं, उसने लोगों को एक- दूसरे से काफ़ी क़रीब ला दिया है। लेकिन साथ ही साथ इसी तकनीक ने हमसे सुकून का वह समय छीन लिया है जो हम आपस में बांट सकें। आज हमने पूरी दुनिया को तो मुट्ठी में कैद कर लिया है, लेकिन इसके साथ ही हम खुद में इतने मशगूल हो गये हैं कि एक तरह से सारी दुनिया से कट से गये हैं। मगर हमे इस पर विचार करना चाहिए की एक वास्तविक दोस्त का स्वभाव, चरित्र-व्यवहार, मनोवृत्ति या मनोभाव कैसा होना चाहिएं ?जहाँ तक मेरा मानना हैं कि एक अच्छें और सच्चें दोस्त में ये सारे गुण़ स्वभाव, चरित्र-व्यवहार, मनोवृत्ति या मनोभाव आदि आदि निहीत होंगें। एक सच्चें दोस्त का व्यवहार निष्कपट होंगा हमेशा हमारे साथ मगर आज इन गुणों की तरफ ध्यान न देकर हम स्वार्थ को देखते हुए मित्र को अपनी मित्रता की सूचि में सम्मिलित करते है ! सच्चे मित्र के तीन लक्षण होते हैं अहित को रोकना, हित की रक्षा करना और विपत्ति में साथ नहीं छोड़ना। जो तुम्हें बुराई से बचाता है, नेक राह पर चलाता है और जो मुसीबत के समय तुम्हारा साथ देता है, बस वही मित्र है। मित्र वह है जो आप के अतीत को समझता हो और आप जैसे हैं वैसे ही आप को स्वीकार करता हो।मगर एक कटु सत्य है आज सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है। मित्र का कर्त्तव्य है कि वह अपने मित्र के गुणों को प्रकाशित करे जिससे कि उसके गुणों का प्रकाश देश समाज में फैले न कि उसके अवगुणों को उभरे जिससे उसे समाज में अपयश का सामना करना पड़े.वह मित्र के गुणों का नगाड़े की चोट पर गुणगान करता है और उन अवगुणों को दूर करने का प्रयास करता है जो उसे समाज में अपमान व् अपयश देगा ! तो अब आप सभी मित्र निश्चय करे मित्र कोन हो केसा हो और हम मित्रता का फर्ज केसे अदा करे ! कहने को तो बहुत कुछ हैं मेरे दिल में लेकिन कम शब्दों में विराम लगाता हूँ।
लेखक — उत्तम जैन (विद्रोही )

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