पिछले 2 दशको में संचार माध्यमो में तेजी से वृद्धि हुई। दूरदर्शन पर दिन में एक घंटे आने वाले समाचार अब सैंकड़ो चैनल्स पर 24 घंटे आते है। मीडिया को भले लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया हो, लेकिन आज भारत में निष्पक्ष मीडिया विलुप्ति की और है। अधिकतर मीडिया चैनल के मालिक या तो कोई नेता होता है, या उद्योगपति। कई चैनल्स में विदेशो का पैसा भी लगा होता है। न्यूज़ चैनल पर न्यूज़ कम होती है, और व्यूज (उनके विचार) अधिक। कौनसी खबर को दिखाना है और कौनसी खबर दबानी है, यह चैनल तय करता है। किस बहस का शीर्षक क्या है, उसमे कौन हिस्सा ले रहे है, यह भी बहोत मायने रखता है। वो चाहे तो गंभीर समस्या को लेकर धरने पर बैठे हज़ारो लोगो की खबर को दबा दे, उसे ड्रामा घोषित कर दे, या उसे एक आंदोलन में बदल दें। आजादी की 70 सालगिरह पर आप सभी को बहोत बहोत बधाई। खास कर युवा मित्रो से मेरा यही आग्रह है की अपनी सोच को आजाद बनाए। संभव है की कई विषयो पर हमारी सोच गलत हो, संभव है समय के साथ हमारे विचार बदलते रहे। किन्तु वो जैसे भी आपके विचार होंगे, एक आजाद सोच होगी। हर विषय पर अपनी राय, अपने विचार बनाने का प्रयास करे। किसी भी राजनितिक दल के अंधभक्त न बने, गुलाम न बने। नेताओ के भक्ति भी हमारे देश मे सामान्य है। मिडिया नेताओ आराधना करना बंद करे ! कई महत्वाकांक्षी लोग इस गुलामी को अपनी व्यक्तिगत उन्नति के लिए चुनते है। लेकिन अधिकतर भोले भाले लोग सिर्फ श्रद्धा के मारे गुलामी में जकड़े रहते है। अपनी अपनी राजनैतिक पसंद होना गलत नहीं है, लेकिन इस हद तक गुलामी की उस नेता के गलत कार्यो को सही साबित करने की जिम्मेदारी भी हम ले ले? और उसके प्रतिद्वंद्वियों को ऐन केन प्रकारेण गलत साबित करने का प्रयास करे? यह तो उचित नही न !हमारा नेता हमारे द्वारा चुना हुआ जन प्रतिनिधि होता है। हम सब की सम्मिलित सोच के अनुसार नीतिया बनाना उसकी जिम्मेदारी है। जिस दिन हर मुद्दे पर अपनी व्यक्तिगत राय बनाना बंद कर दे, हम गुलामी की और बढ़ने लगते है। इस तरह की मानसिक गुलामी का शिकार जब एक बड़ा मिडिया वर्ग बन जाताहै तो वो अनजाने में उस नेता को तानाशाह बना देता है। इसमे उसका दोष नहीं। दोष मिडिया का है ! दोष आपकी कलम का है आलोचकों का अभाव और हर बात में हामी भरने वालो की भीड़ उस नेता को ये विश्वास दिलाती है, की मेरी हर सोच, मेरा हर बयान, मेरा हर निर्णय सही है, लोकतान्त्रिक है क्योंकि एक बड़ा वर्ग इसका समर्थन कर रहा है। आवश्यकता .आविष्कार की जननी है..आज मिडिया की जरुरत स्वतंत्र सोच…आप प्रेस की आजादी जरुरी है यह हमे मिलेगी नही हमे आजादी निडरता से लेनी होगी ! संकल्प बद्ध होकर कर्तव्य का निर्वहन करना होगा ! मीडिया का काम बड़ा ही चुनौती पूर्ण है. जैसे सिपाही देश की रक्षा की खातिर लड़ते हैं, उसी तरह लोकतंत्र की रक्षा के लिए मीडियावाले लड़ते हैं. भले ही लोगों को मीडिया का काम आसान लगता है, लेकिन इसमें बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ-साथ चुनौती का भी सामना करना पड़ता है….मगर मिडिया को पूर्ण ईमानदारी के साथ अपना फर्ज निभाना होगा !
Read Comments