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तप की साधना और शरीर को फायदा

विद्रोही विचार
विद्रोही विचार
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TAPतप की साधना का वैज्ञानिक व् धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है । तप का अर्थ है स्वयं का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर कर्म की निर्जरा करना सिर्फ जैन ही नही सभी धर्मों में तप का उल्लेख मिलता है फर्क है सिर्फ तप करने तरीका अलगअ्लग मगर उदेश्य सिर्फ एक ही है । विज्ञानं में भी तप को महत्व दिया गया है । शरीर को निरोगी बनाये रखने के लिए भी तप बहुत जरुरी है । तप किसी भी रूप में हो सकता है उपवास , एकासन , खाद्य संयम , रात्रि भोजन न् करना , प्रतिदिन नियत द्रव्य से ज्यादा सेवन न् करना जैसे हम नियम ले की आज में 10 द्रव्य से ज्यादा का सेवन नही करूँगा , मोन की साधना , अपने आवेश पर नियंत्रण करना आदि आदि भी एक तरह के तपस्या है । जैन धर्म में तप को एक महत्वपूर्ण साधना माना गया है । जैन धर्म में साधु , संत , आचार्य , श्रावक , श्राविका वर्ष भर में तो तप करते ही है मगर तप विशेष रूप से चातुर्मासिक काल में विशेष रूप से करते है इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस चार माह के काल में तपस्या की साधना मौसम की अनुकूलता भी है और दूसरा कारण इस काल में साधु संत वर्षावास हेतु स्थायी हो जाते है और सभी धर्म प्रेमी श्रावक श्राविकाओं को विशेष रूप से साधु संतों से तप की आराधना करने हेतु प्रेरणा मिलती है । तप के चमत्कार की चर्चा करु तो काफी बहुत बाते है मगर संक्षिप्त में की शरीर को स्वस्थ रखने व् असाध्य बीमारी से मुक्त होने के लिए तप की साधना एक अचूक नुस्खा है । आप के सामने एक उदाहरण पेश करूँगा आज मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे प्रकृति ने बुद्धि प्रदान की है । अपने रोग व् लक्षण को अनुभव कर सकता है । और तरह तरह डॉक्टर वेध. व् हकीमो के पास रोग मुक्ति के लिए भागता है मगर मूक पशु पक्षी जानवर अपनी वेदना व् समस्या महसूस कर सकते है मगर व्यक्त नही करते और अपनी समस्या का स्वयं ही उपचार कर लेते है । जैसे ही वो अस्वस्थ महसूस करते है खाना…

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