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हरियाणा विधानसभा सम्बोधन सोशल मीडिया में जंग

विद्रोही विचार
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tarunसोशल मीडिया में जंग छिड़ी । हरियाणा विधानसभा के सत्र के पहले दिन जैन मुनि आचार्य तरुण सागर जी के प्रवचन को लेकर जबरदस्त विवाद छिड़ा । उनके प्रवचन को कड़वे वचन का नाम दिया गया था और सभी पार्टियों के विधायकों ने पूरी तन्मयता से उनकी बातें सुनीं थी । उनके प्रवचन को लेकर दो तरह के विवाद हुए । एक विवाद तो किसी धर्म गुरू को विधानसभा में बुला कर प्रवचन कराने का है और दूसरा विवाद उनकी कही बातों का है। उन्होंने कहा है कि धर्म पति की तरह है और राजनीति पत्नी की तरह। उन्होंने कहा कि जैसे पत्नी पर पति का अंकुश जरूरी है वैसे ही राजनीति पर धर्म का अंकुश जरूरी है। इसे लेकर नारीवादी कार्यकर्ता और कॉमरेड लोग काफी भड़के गए। मुनि तरुण सागर द्वारा हरियाणा विधानसभा में संबोधन पर विपक्ष का हंगामा खासा है। खासकर वामपंथी बहुत बेचैन हैं। उन्हें लगता है कि तरुण सागर का प्रवचन कराकर हरियाणा सरकार ने गैर-संवैधानिक काम किया है। इनका कहना है कि विधानसभा के भीतर जैन मुनि तरुण सागर का प्रवचन कराकर हरियाणा सरकार ने धर्मनिरपेक्षता को अंगूठा दिखाया है। पर ऐसा नहीं है कि किसी धार्मिक साधु का प्रवचन पहली बार हुआ हो मगर चूंकि लोगों की याददाश्त इतनी कमजोर होती है कि पास का अतीत भी याद नहीं कर पाते। क्या अब बताना पड़ेगा कि संसद के सांसदों को छह दिसंबर 2005 को बौद्घधर्म गुरू दलाई लामा संबोधित कर चुके हैं पर तब इतना हंगामा शायद इसलिए नहीं कटा था क्योंकि कुछ सिरफिरे ददलानी, पुनेवाला जेसे दलाई लामा को तो बर्दाश्त कर लेते हैं पर एक भारतीय धर्मगुरु को नहीं। कितनी ही बार पोप ने योरोप की संसदों को संबोधित किया हुआ है। मगर आज एक जैन मुनि ने संबोधित कर दिया तो कांग्रेसी साहबजादे कह रहे हैं कि जाकिर नाइक से भी विधायकों को ज्ञान दिलाओ। अब कौन बताए कि जाकिर नाइक एक धर्म प्रचारक है जबकि जैन मुनि तरुण सागर कोई प्रचारक नहीं बल्कि जैन अपरिग्रह के प्रतीक हैं। मगर यह बात न कांग्रेसी समझ सकते हैं न वामपंथी। तरुण सागर जी के व् दिगंबर संतो पर निर्वस्त्र रहने पर भी अंगुलियां उठाई जा रही हैं। पर वे यह सामान्य-सी बात भी नहीं समझ पा रहे हैं कि जैन दिगंबर मुनि इतने अपरिग्रही होते हैं कि वे कोई वस्त्र धारण नहीं करते और कोई भी मुनि यह तब ही कर सकता है जब वह समस्त विकारों से दूर हो जाए। जो व्यक्ति सारे सांसारिक विकारों से दूर हो गया हो तो उसके लिए वस्त्र धारण करना और न करना समान है। लेकिन इस दिव्यता तक पहुंचने के लिए तपस्या करनी पड़ती है जो कांग्रेसियों और वामपंथियों के लिए असंभव है। जैन मुनि ने जो उपदेश दिए वे कोई अजूबे नहीं बल्कि समरसता और न्यायपूर्ण समाज के लिए आवश्यक थे। आप सिर्फ एक धर्मविशेष की समस्या को सारे देश के लोगों पर लाद रहे हो। जातिवाद हिंदू समाज में है और वह राजनीतिकों का खेल है। वे इसे दूर नहीं करना चाहते बल्कि इसके बूते वे राजनीति के खेल करना चाहते हैं। पर जब दिमाग में शंका भरी हो तो किया ही क्या जा सकता है? मैं तो कहूंगा कि हरियाणा सरकार ने जैन मुनि का प्रवचन कराकर परोक्ष रूप से यह संदेश दिया है कि अपरिग्रही बनना मनुष्य के लिए सर्वोच्च प्रकृति है। अगर राजनीतिक इस प्रकृति को समझें तो शायद समाज के और लोग भी इसके अनुरूप आचरण करें। पर हल्ला करने वाले किसी भी आध्यात्मिक कृत्य को बस सांप्रदायिकता में देखते हैं।आज एक जैन मुनि के प्रवचन पर कांग्रेसी रोना रो रहे हैं पर वे क्या बता पाएंगे कि कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी स्वयं जैन मुनि महाराज विद्यासागर के पास जाया करती थीं और उनके समक्ष दंडवत होती थीं। मुनि विद्यासागर भी निर्वस्त्र रहते थे। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी आदि नेता कई बार द्वारिकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के पास दंडवत मुद्रा में गए हैं। उन्हें अपने आवास पर बुलाया है। जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुखारी के लिए तो इनके घर के दरवाजे खुले रहते थे और ये पलक पांवड़े बिछाये उनका इंतजार करते थे। फिर एक अत्यंत अल्पसंख्यक समुदाय वाले जैन मुनि के प्रवचन पर इतना बावेला क्यों? क्या मार्क्सवादियों को बताना पड़ेगा कि उनके मुख्यमंत्री ज्योति वसु जब तक मुख्यमंत्री रहे उन्होंने एक बार भी ऐसा नहीं किया कि सेंट्रल पार्क की दुर्गा पूजा में शिरकत न की हो। अभी गत वर्षो केरल में जन्माष्टमी स्वयं मार्क्सवादियों ने अपनी पहल पर मनाई क्योंकि केरल में हिंदू ही माकपा का जनाधार हैं। हरियाणा सरकार ने यह पहल की है और इसके परिणाम भी सकारात्मक निकलेंगे। एक तो इस समुदाय को पहली बार यह संदेश मिला है कि अब वाकई भारत में अल्पसंख्यकों का सम्मान करने वाली सरकार है। जब आप संसद या विधायिकाओं में तमाम काले कारनामे वाले नेताओं के प्रवचन करा सकते हैं तो एक जैन मुनि के प्रवचन पर भला क्या आपत्ति हो सकती है? दूसरे एक आध्यात्मिक नेता के प्रवचन का अगर शतांश भी लाभ विधायक उठा पाएगे तो शायद वे अधिक बेहतर तरीके से अपने आचरण को दुरुस्त कर पाएंगे। सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता ने इस पर विवाद शुरू किया। कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जैन मुनि को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की। तरुण सागर जी निर्वस्त्र रहते हैं, इसे लेकर भी मजाक उड़ाया गया। लेकिन थोड़ी देर विवाद चलने के बाद अचानक सोशल मीडिया में जैन मुनियों के साथ इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी और शीला दीक्षित आदि की फोटो की बाढ़ सी आ गई। 70 के दशक के आखिरी दिनों की एक फोटो शेयर की गई, जिसमें इंदिरा गांधी विद्यानंद मुनि महाराज के साथ बैठी हैं। उन्हीं के साथ सोनिया गांधी की फोटो भी शेयर हुई। इसके बाद कांग्रेस नेता बहस में ठंडे पड़ गए। आम आदमी पार्टी की ओर से संगीतकार विशाल ददलानी ने जैन मुनि को लेकर अपमानजक टिप्पणी की। लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उनको सोशल मीडिया पर ही सार्वजनिक फटकार लगा दी। केजरीवाल ने जैन मुनि के प्रति पूरी श्रद्धा दिखाई, जिसके बाद ददलानी ने माफी मांगी और अपने को इस राजनीति से अलग करने का ऐलान किया। कांग्रेस नेताओं की फोटो शेयर होने और केजरीवाल के इस रुख के बाद सोशल मीडिया में यह विवाद ठंडा हुआ है। जैन समाज भी शांत हो गया क्यों की श्वेताम्बर सम्प्रदाय पर्युषण पर्व शुरू हो गये और दिगंबर सम्प्रदाय के होने वाले है ! खेर अब विकृत मानसिकता वालो को सोचना चाहिए अपने बयानों पर मंथन करना चाहिए ! सिर्फ खुद को हाईलाइट करने के चक्कर में किसी धार्मिक आस्था को चोट पहुचाना कोई बहादुरी नही ….उत्तम जैन (विद्रोही )

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